Patna(BiharTV वशिष्ट कुमार): पटना- कहते हैं जिस राज्य की शिक्षा व्यवस्था चरमरा जाए वह राज्य विकास से कोसों दूर हो जाता है। कभी चरवाहा विद्यालय , कभी पोषाहार योजना तो कभी "स्कूल चले हम" के नारों के साथ बिहार की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकारों द्वारा कई तरह की योजनाओं का शुभारंभ किया गया है, इसके बावजूद भी शिक्षा की बदहाली पटना के नौबतपुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय महमदपुर के दर्शन मात्र से ही हो जाता है।
नालंदा विश्वविद्यालय , तक्षशिला और कई तरह के पांडुलिपियों से यह स्पष्ट होता है कि कभी हमारे बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतने चरम सीमा पर थी की देश-विदेश से लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने पहुंचते थे। इतना ही नहीं राजधानी पटना के तरेगना ( मसौढ़ी ) और दानापुर के खगौल मैं देश-विदेश के वैज्ञानिक आकाशीय पिंडों की खोज के लिए यहां बड़े पैमाने प्रयोगशाला बना रखा था।
आज स्थिति यह है कि यहां की बदतर शिक्षा व्यवस्था अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हम बात कर रहे हैं नौबतपुर स्थित महमदपुर प्राथमिक विद्यालय का यहां की स्थिति दर्शन मात्र से ही स्पष्ट हो जाता है। बिहार के शिक्षा प्रणाली को खुलेआम मुह चिड़ा रही यहां की शिक्षा व्यवस्था। महज एक कमरे में वर्ग प्रथम से लेकर पांचवी क्लास तक के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था की दिशा और दशा को स्पष्ट कर रही है।
स्थिति यह है कि विद्यालय में 111 बच्चों के नामांकन के बावजूद भी आधे से अधिक बच्चे विद्यालय आते ही नहीं हैं। देखरेख और रखरखाव के अभाव में विद्यालय के चारों तरफ बड़े और घने पेड़ पौधों ने यहां के विद्यालय को गुरुकुल में तब्दील कर दिया है। स्थिति यह है कि वर्षों पूर्व इसके निर्माण में लगे एक कमरे का कार्य आज भी अधूरा पड़ा है।
जर्जर हो चुके इस विद्यालय में बारिश के मौसम में बच्चों और शिक्षकों की कौन कहे विद्यालय के कागजातों को भी बचाना मुश्किल हो जाता है। विद्यालय तक पहुंचने का मात्र एक साधन गांव की कच्ची पगडंडी है। बरसात के मौसम में गांव का यह विद्यालय तीन से चार फीट के आसपास पानी में तैरने लगता है तब विद्यालय के पठन-पाठन का कार्य महीनों ठप हो जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि बरसात के 3 से 4 महीने विद्यालय में ताला लटकता नजर आते हैं।
इसका कारण विद्यालय के शिक्षक बताते हैं कि बरसात के मौसम में पानी भर जाने के कारण विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में विद्यालय का ताला खोलना कितना उचित होगा यह समझा जा सकता है। यहां कार्यरत 3 सहायक शिक्षक और एक प्रभारी शिक्षिका किसी तरह अपनी ड्यूटी बजा कर अपने कार्य का इति श्री समझ लेते हैं।
बच्चों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही पोशाक योजना यहां पूरी तरह ब्लॉक होता नजर आ रहा है। एक तो पहले यह की बच्चों की उपस्थिति आधे से भी यहां कम है और दूसरा यह कि जो भी बच्चे विद्यालय आते हैं उनके शरीर पर स्कूल ड्रेस होता ही नहीं है।
इस मामले में विद्यालय के शिक्षक यह बताते हैं कि बच्चों के अभिभावक को स्कूल जाने से पहले बच्चों को स्कूल ड्रेस पहना कर भेजने के लिए कहा जाता रहा है लेकिन इसके बावजूद भी बच्चों के अभिभावक के एक अकाउंट में पैसा भेजने के बाद भी उनका ड्रेस परिवार के लोग नहीं बना पाते हैं।
सहसा अनुमान लगाया जा सकता है राजधानी के हृदय स्थल में नौबतपुर के विद्यालय की स्थिति यह है तो दूरदराज गांव के विद्यालय की स्थिति क्या होगी। ऐसे में बिहार के बच्चे कितने तेजस्वी और बुद्धिमान होंगे इसका अनुमान सहरसा लगाया जा सकता है।
क्या कहते हैं ग्रामीण..
राजनाथ शर्मा- "महमदपुर बारिश होने के बाद बच्चों को स्कूल जाने में काफी परेशानी होती है। बच्चे या तो भींग जाते हैं। या फिर कीचड़ में गिर जाते हैं। स्कूल तक रास्ते की व्यवस्था विभाग को करना चाहिए।"
अरुण सिंह, "महमदपुर विद्यालय निर्माण के वक्त रास्ता की बात भी हुई थी। विद्यालय निर्माण के बाद जमीन दाता मुकर रहे हैं। जिसके कारण आज भी रास्ता अवरुद्ध है।"
विभा कुमारी विद्यालय के प्रभारी शिक्षिका- "जब विद्यालय तक जाने का रास्ता नहीं था। तो विद्यालय की स्वीकृति ही गलत है। किसी अन्य स्थल का चयन करना चाहिए था। विद्यालय में जाने के लिए रास्ता बहुत ही जरूरी है। बच्चों के कष्ट को देखते हुए सरकारी महकमे को पहल करना चाहिए।"
मुखिया बोले
नवही पंचायत के मुखिया डोमिनी देवी- विद्यालय तक रास्ता निकालने के लिए पहल किया जा रहा है। पदाधिकारियों के उदासीनता के कारण अब तक नतीजा नहीं निकल सका है। अंचलाधिकारी से बात हुई है।