बिहार शरीफ में हाल के दिनों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। चिकित्सक प्रसव के लिए आई महिलाओं को यह कहकर निजी क्लिनिक भेज रहे हैं कि उनके पास केवल 9 ग्राम हीमोग्लोबिन है, जिससे अस्पताल में ऑपरेशन नहीं हो सकता। जबकि आशा कार्यकर्ता इन्हीं महिलाओं को निजी क्लिनिक ले जाकर प्रसव करवाती हैं और इसके बदले में भारी रकम वसूलती हैं।
यह पूरा खेल मिल-जुलकर चल रहा है, जिसमें सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों को भी बिचौलियों द्वारा मोटी रकम दी जाती है। सरकारी चिकित्सक मरीजों को निजी क्लिनिक के लिए रेफर करते हैं और आशा कार्यकर्ता बिचौलिए का काम करती हैं, मरीजों को निजी क्लिनिक तक पहुंचाने में।
स्थानीय निवासियों और मरीजों के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन और अधिकारी इस मामले की जानकारी के बावजूद चुप्पी साधे हुए हैं। कटरा की निवासी शवनम, जो प्रसव के लिए सदर अस्पताल आई थीं, ने बताया कि अस्पताल में तैनात चिकित्सक मरीज को देखने तक नहीं आतीं, बल्कि केवल रेफर करने के लिए पुर्जी थमा दी जाती है। अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि प्रसव वार्ड पूरी तरह नर्सों के भरोसे चल रहा है, जबकि चिकित्सक अक्सर अनुपस्थित रहते हैं।
एक नाम न छापने की शर्त पर एक आशा कार्यकर्ता ने बताया कि रेफर करने के बदले निजी क्लिनिक से जो रकम आती है, उसे पदाधिकारी से लेकर चिकित्सकों तक बांटा जाता है। चिकित्सक जितने ज्यादा मरीज रेफर करते हैं, उन्हें उतनी ही ज्यादा रकम मिलती है।
यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में गहरी भ्रष्टाचार और मिलीभगत को उजागर करता है, और इसे रोकने के लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा तत्काल कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।