सर सैयद अहमद खान अंधेरे में चिराग की तरह थे। मो0 अरकम यूसुफ अलीग

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 सर सैयद डे के शुभ अवसर पर अरकम युसूफ अलीग जो 2016 से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इनरोल है। उन्होंने कहा कि ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय समाज के युगद्रष्टा, अग्रणी समाजसेवी और महान् सपूतों में से एक सर सैयद अहमद खान के निधन के एक सदी से अधिक समय के बाद भी हम उनकी सच्ची छवि पेश करने में असमर्थ रहे हैं। उनके विरोधियों से ज्यादा प्रशंसक होने के बावजूद विडंबना यह है कि केवल एक समुदाय के मसीहा के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित किया गया और एक महान् चिंतक, मानवतावादी, राष्ट्रवादी युगपुरुष के रूप में उनके वास्तविक व्यक्तित्व को नजरअंदाज किया गया। यह सच है कि वह अपने मुस्लिम भाइयों की दयनीय और दुर्बल स्थिति के बारे में बहुत चिंतित थे और उन्हें धार्मिक कट्टरता के दलदल से निकालने की तीव्र इच्छा रखते थे, पर यह भी सच है कि वह उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा की आवश्यकता के प्रति जागृत करना चाहते थे जो अकेले उन्हें पुनर्जीवित कर सकती थी और उन्हें प्रगति के पथ पर ले जा सकती थी। हालांकि, यह भुला दिया जाता है कि सर सैयद हिंदू या अन्य समुदायों के लिए भी अपनी संस्था की समान उपयोगिता से बेखबर नहीं थे। हम भले ही भारत में खुद को हिंदू या मुसलमान कह सकते हैं, लेकिन विदेशों में हम सभी भारतीय मूल निवासी के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए एक हिन्दू का अपमान मुसलमान का अपमान है और एक मुसलमान का अपमान हिन्दुओं के लिए शर्म की बात है। समान परिस्थितियों में, जब तक दोनों भाइयों का पालन-पोषण नहीं किया जाता, तब तक हमारा सम्मान कभी नहीं किया जा सकता है। जब हम एक साथ समान शिक्षा प्राप्त करते हैं, और उनके भविष्य के कैरियर के लिए प्रगति के समान साधन प्रदान किए जाते हैं, तभी प्रगति की बात सोच सकते हैं।

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