नालन्दा : देश के 12 अर्कों (प्रसिद्ध सूर्य मंदिर) में नालंदा के बड़गांव और औंगारी भी शामिल हैं। इन दोनों सूर्यपीठों में छठ महापर्व का अनुष्ठान करने देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। नहाय-खाय के दिन से ही व्रती परिवार के साथ यहां पहुंचने लगते हैं। सूर्य के तालाब के आसपास तम्बु बनाकर चार दिनों तक रहते हैं। ऐसा लगता है कि तालाब के चारों तरफ तम्बुओं का शहर बस गया हो।
बड़गांव में ही श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को मिली थी श्राप से मुक्ति:
मंदिर के पुजारी राजकुमार मिश्रा कहते हैं कि बड़गांव का पुराना नाम बर्राक था। ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी। मान्यता है कि महर्षि दुर्वाशा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने एक बार द्वारिका गये थे। उसी दौरान किसी बात पर राजा साम्ब को हंसी आ गयी। महर्षि दुर्वासा ने उनकी हंसी को अपना उपहास समझ लिया और राजा साम्ब को कुष्ट होने का श्राप दे दिया। कथा का वर्णन पुराणों में भी है। बाद में श्रीकृष्ण ने राजा साम्ब को कुष्ट रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना और सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी। राजा साम्ब राशि की खोज में निकल पड़े।
रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो साथ में चल रहे सेवक को पानी लाने का आदेश दिया। घना जंगल होने के कारण पानी दूर-दूर तक नहीं मिला। एक जगह गड्ढे में कुछ पानी था। सेवक ने उसी पानी लाकर राजा को दिया। राजा ने पहले पानी से हाथ-पैर धोया, उसके बाद पानी को पीया। पानी के पीते ही उन्होंने अपने आप में अप्रत्याशित परिवर्तन महसूस किया। इसके बाद राजा कुछ दिनों तक उस स्थान पर रहकर गड्ढे के पानी का सेवन करते रहे। राजा साम्ब ने 49 दिनों तक बर्राक में रहकर सूर्य की उपासना और अर्घ्यदान किया, जिससे उन्हें श्राप से मुक्ति मिली थी। कुष्ष्ट रोग ठीक हो गया। बाद में राजा ने ही बड़गांव में तालाब का निर्माण कराया। आज भी तलाब में स्नान करने कुष्ट जैसे असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है। तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प आदित्य, विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, आदित्य माता जिन्हें हम छठी मैया भी कहते है सहित नवग्रह देवता की प्रतिमा निकली। उन्होंने अपने दादा कृष्ण की सलाह पर तालाब के पास मंदिर बनवाकर स्थापित किया था। वर्ष 1934 के भूकंप के कारण मंदिर ध्वस्त हो गया। बाद में ग्रामीणों ने मंदिर का निर्माण कराया।
औंगारी धाम: पूजा करने से मिलता है मनोवांछित फल :
एकंगरसराय प्रखंड के पौराणिक सूर्य नगरी औंगारी धाम में भगवान भास्कर का प्राचीन मंदिर है। यहां कार्तिक और चैती छठ के अवसर पर देशभर के विभिन्न प्रदेशों से श्रद्धालु भगवान भास्कर कॊ अर्घ्य प्रदान करने आते हैं। सूर्यपीठ की महत्ता यह कि यहां पूजा अर्चना करने मात्र से निर्धन कॊ धन, नि:संतान कॊ संतान व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। यहां के सूर्य कुंड में स्नान करने से कुष्ट रोगियों की काया कंचन होती है। औंगारी का पुराना नाम अंग्गार्क था।
मंदिर का दरवाजा पश्चिम की ओर :
औंगारी धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष रामभूषण दयाल कहते हैं कि मान्यता है कि श्राप से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब ने औंगारी धाम में सूर्य की उपासना की थी। वे काफी दिनों तक यहां रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दान किया था। उसके बाद उन्हें कुष्ट से निजात मिली थी। औंगारी का सूर्य मंदिर भी अनोखा है। अमूमन मंदिरों का दरबाजा पूरब की दिशा में होता है। लेकिन, यहां के सूर्य मंदिर का दरवाजा पश्चिम की ओर है। इसके पीछे भी मान्यता जुड़ी हैं। कथा है कि एक बार औंगारीधाम के रास्ते से एक बारात जा रही थी। कुछ बारातियों ने कहा कि अगर सूर्यदेव में शक्ति है तो मंदिर का दरबाजा पूरब से पश्चिम हो जाए। इतना कहते ही मंदिर का दरबाजा पश्चिम की ओर हो गया।
नालन्दा से राज की रिपोर्ट






