"चाइनीज रोशनी की चकाचौंध में मिट्टी के दीये की महत्ता"
मो० हमजा अस्थानवी
आधुनिकता की दौड़ में, जहाँ तकनीक और उपभोक्तावाद ने हमारी जीवनशैली को प्रभावित किया है, वहीं कुछ ऐसी परंपराएं भी हैं जो धीरे-धीरे अस्तित्व खो रही हैं। इस समय दीपावली का त्योहार नजदीक है, और बाजारों में चाइनीज रोशनी की चमक ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर, विशेषकर मिट्टी के दीयों को लगभग हाशिए पर डाल दिया है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह केवल दीयों का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे कुम्हारों की मेहनत और उनकी संस्कृति का भी मामला है।
कुम्हार, जो मिट्टी से दीये बनाते हैं, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये कुम्हार अपने हाथों से बनाई गई कलाकृतियों के माध्यम से न केवल अपनी जीविका कमाते हैं, बल्कि हमारी परंपराओं को भी जीवित रखते हैं। दीवाली जैसे त्योहार पर जब हम दीप जलाते हैं, तो यह केवल रोशनी का प्रतीक नहीं होता, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों की गहराई को भी दर्शाता है। लेकिन अब जब बाजार में चाइनीज रोशनी के विकल्प उपलब्ध हैं, तो कुम्हारों के घरों में अंधेरा छाने लगा है।
कई लोग यह नहीं समझते कि चाइनीज रोशनी की चमक के पीछे कितनी मेहनत और विचारों की कमी है। ये रोशनी केवल सजावट का हिस्सा होती हैं, जबकि मिट्टी के दीये में कुम्हार की कला, मेहनत और हमारी परंपरा का एक सजीव उदाहरण होता है। चाइनीज उत्पादों की सस्ती कीमतें और आकर्षक डिजाइन ने कुम्हारों की बनाई हुई मिट्टी के दीयों को बेजा कर दिया है। इससे न केवल कुम्हारों की आय प्रभावित हो रही है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में पड़ रही है।
हमें यह समझना चाहिए कि हम केवल अपने त्योहारों को मनाने के लिए चाइनीज रोशनी का उपयोग नहीं कर सकते। हमें अपने कुम्हारों का समर्थन करना चाहिए और उनकी मेहनत को सराहना चाहिए। इस दीपावली पर, हम सभी को मिलकर निर्णय लेना चाहिए कि हम मिट्टी के दीये खरीदकर अपने त्योहार को पारंपरिक रूप से मनाएंगे। यह न केवल कुम्हारों को आर्थिक सहायता देगा, बल्कि हमें अपनी संस्कृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी कराएगा।
कुम्हारों के दीये, उनके संघर्ष और मेहनत की कहानी कहते हैं। जब हम दीयों को जलाते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यह रोशनी सिर्फ प्रकाश नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह हमारे लिए एक अवसर है कि हम अपने कुम्हारों का समर्थन करें और अपनी परंपराओं को सहेजें।
इस दीपावली पर, आइए हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम मिट्टी के दीयों का उपयोग करेंगे और कुम्हारों को उनके हक का मान देंगे। इससे न केवल हमारी दीवाली रोशन होगी, बल्कि हम एक मजबूत और सशक्त समाज की दिशा में भी एक कदम आगे बढ़ाएंगे। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को यह बताएँ कि मिट्टी के दीये केवल प्रकाश का स्रोत नहीं हैं, बल्कि यह हमारे इतिहास, हमारी संस्कृति और हमारे कुम्हारों की मेहनत का प्रतीक हैं।